
दोनों ही समाज को विभाजित करने और भय का माहौल पैदा करने की नीति अपनाते हैं। यह बयान तब आया जब केंद्र सरकार ने **आरएसएस की 100वीं वर्षगांठ** पर एक **स्मारक डाक टिकट और ₹100 का सिक्का** जारी करने की घोषणा की।विजयन ने इस कदम को संविधान और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का “**गंभीर अपमान**” बताया।

उन्होंने कहा कि आरएसएस ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में कोई अहम भूमिका नहीं निभाई, बल्कि हमेशा उससे दूरी बनाए रखी। उनके अनुसार, ऐसी संस्था का सरकारी स्तर पर सम्मान करना लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष भारत की भावना के विपरीत है।

विपक्षी दल, विशेषकर **CPI(M)**, ने भी केंद्र के इस निर्णय की तीखी आलोचना की है। उनका कहना है कि आरएसएस की विचारधारा संविधान के मूल सिद्धांतों — **धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय और एकता** — के खिलाफ है। इसलिए सार्वजनिक धन का उपयोग इस तरह की विचारधारा को मान्यता देने में करना उचित नहीं है।वहीं, **आरएसएस और बीजेपी समर्थक** इसे संगठन के सामाजिक कार्यों और राष्ट्रभक्ति के प्रति सम्मान मानते हैं।

उनका कहना है कि आरएसएस ने समाज सेवा और सांस्कृतिक एकता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।कुल मिलाकर, यह विवाद सिर्फ सिक्के या डाक टिकट का नहीं, बल्कि भारत की **विचारधारा, संविधान और इतिहास की व्याख्या** से जुड़ा है। विजयन के बयान ने इस बहस को और तीव्र कर दिया है, जो अब राष्ट्रीय स्तर पर वैचारिक टकराव का विषय बन गई है।
Reported By – Jatin Sisodiya