
इस श्रेणी में आने वाली किसी भी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) को तीन साल के भीतर शेयर बाज़ार में लिस्ट होना अनिवार्य होता है।
अब निर्धारित समयसीमा पूरी होने में सिर्फ एक दिन शेष है, लेकिन संबंधित कंपनी ने लिस्टिंग से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया है। उसका तर्क है कि उसने अपने ऊपर मौजूद पूरा कर्ज चुका दिया है और अब NBFC के रूप में कार्य करने की आवश्यकता नहीं है। इसी कारण उसने आरबीआई के पास अपना NBFC पंजीकरण सरेंडर करने के लिए आवेदन कर दिया है।
इस स्थिति ने एक तरह से नियामकीय पेचीदगी खड़ी कर दी है। RBI का कहना है कि एक बार कंपनी को अपर लेयर एनबीएफसी के रूप में वर्गीकृत किया गया है, तो उसे नियमों के तहत लिस्टिंग का पालन करना ही होगा। दूसरी ओर, कंपनी का पक्ष यह है कि जब अब वह NBFC के तौर पर व्यवसाय ही नहीं करना चाहती, तब लिस्टिंग की शर्त लागू नहीं होनी चाहिए।

यह मामला नियामकीय ढांचे और कंपनियों की रणनीति के बीच संतुलन की चुनौती को उजागर करता है। एक ओर RBI का उद्देश्य वित्तीय स्थिरता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है, वहीं दूसरी ओर कंपनियां अपने व्यवसाय मॉडल और पूंजी संरचना के आधार पर लचीलापन चाहती हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस गतिरोध का समाधान कैसे निकलता है—क्या RBI अपने नियमों पर सख्त रुख बनाए रखेगा या फिर कंपनी को NBFC लाइसेंस सरेंडर करने की अनुमति देकर लिस्टिंग से छूट देगा।
Reported By – Jatin Sisodiya