
रावण की मृत्युलंका युद्ध में जब भगवान श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर रावण का वध किया, तो रावण रणभूमि में गिर पड़ा। वह अत्यंत बलशाली, विद्वान और शिवभक्त था, लेकिन उसके अहंकार और अधर्म ने उसे विनाश की ओर धकेल दिया। विभीषण का इनकाररावण के वध के बाद जब उसके दाह संस्कार की बात उठी, तो विभीषण (रावण का भाई, जिसे श्रीराम ने लंका का राजा नियुक्त किया था) ने साफ इनकार कर दिया।*

विभीषण का तर्क था कि रावण अधर्मी था, उसने माता सीता का हरण किया, निर्दोषों का उत्पीड़न किया और धर्ममार्ग से भटक गया।* इसलिए वह ऐसे व्यक्ति का अंतिम संस्कार करने के लिए तैयार नहीं थे।

विभीषण ने कहा कि “अधर्मी और पापी का संस्कार करने से स्वयं को पाप लगता है।”श्रीराम का दृष्टिकोणजब विभीषण ने इनकार किया, तब श्रीराम ने उन्हें समझाया और धर्म का मर्म बताया:* श्रीराम ने कहा कि मृत्यु के बाद शत्रु भी शत्रु नहीं रहता, वह केवल एक देहधारी जीव होता है।

रावण लंका का राजा था, ब्राह्मण था और उसका अंतिम संस्कार करना परिवार और समाज का धर्म है।* श्रीराम ने विभीषण को आदेश दिया कि वे अपने भाई का दाह संस्कार करें, क्योंकि भाई होने के नाते यह उनका कर्तव्य है। दाह संस्कार किसने किया?अंततः श्रीराम की आज्ञा मानकर विभीषण ने रावण का अंतिम संस्कार किया।* विधिपूर्वक अग्नि संस्कार हुआ और रावण का देह त्याग पूर्ण हुआ।* कहा जाता है कि रावण की आत्मा उसके तप, भक्ति और विद्या के कारण परमलोक को प्राप्त हुई।

संदेशयह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि –* धर्म और नीति में कर्तव्य सर्वोपरि है।* मृत्यु के बाद वैर समाप्त हो जाना चाहिए।* चाहे कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो, उसके अंतिम संस्कार का धर्म निभाना आवश्यक है।
Reported By – Jatin Sisodiya