
पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस आर.एफ. नरिमन ने हाल ही में कहा कि धर्मांतरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला मौलिक अधिकारों के खिलाफ है और उसे सुधारने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान हर नागरिक को अपने धर्म का पालन करने, उसे मानने और यहां तक कि धर्म बदलने का भी अधिकार देता है।

जस्टिस नरिमन ने 1977 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर सवाल उठाया, जिसमें कहा गया था कि “धर्म प्रचार करना” मौलिक अधिकार नहीं है। उनका मानना है कि यह फैसला धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे को संकीर्ण कर देता है। उन्होंने साफ कहा कि अगर कोई व्यक्ति स्वेच्छा से धर्म बदलना चाहता है, तो उसे रोका नहीं जाना चाहिए।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत का संविधान धार्मिक सहिष्णुता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है। ऐसे में किसी भी तरह का कानून या फैसला जो धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है, वह इस आज़ादी के खिलाफ है।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस बयान से एक नई बहस छिड़ सकती है। कई राज्यों में धर्मांतरण-विरोधी कानून लागू हैं, जिन पर पहले से ही विवाद है। जस्टिस नरिमन के इस सुझाव से इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में फिर से विचार की संभावना बन सकती है।
Reported By – Jatin Sisodiya