
भारत जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश में माता-पिता की सेवा न केवल एक नैतिक जिम्मेदारी मानी जाती है, बल्कि यह कानूनी रूप से भी बाध्यकारी है। समय-समय पर न्यायपालिका ने इस विषय पर सख्त और स्पष्ट निर्देश दिए हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वृद्ध माता-पिता को सम्मानजनक जीवन और सुरक्षा मिल सके।

1. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (CrPC)
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत, यदि कोई संतान (पुत्र या पुत्री) साधन होते हुए भी अपने माता या पिता की भरण‑पोषण संबंधी जिम्मेदारी नहीं निभाती है, तो माता-पिता प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट की अदालत में याचिका दायर कर सकते हैं। कोर्ट इस स्थिति में मासिक भत्ता निर्धारित कर सकती है, जो संतान को नियमित रूप से देना होता है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में भले ही दंड का प्रावधान हो, परंतु इसे “अपराध” की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। यह व्यवस्था अधिक सामाजिक न्याय पर केंद्रित है, न कि दंडात्मक न्याय पर।

2. माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007
2007 में लागू किया गया यह अधिनियम वृद्ध माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण को सुनिश्चित करता है। इसके तहत बनाए गए “मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल” में माता-पिता शिकायत दर्ज कर सकते हैं और संतान से भरण‑पोषण की मांग कर सकते हैं।
इस अधिनियम की धारा 23 विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यदि माता-पिता ने अपनी संपत्ति उपहार या किसी अन्य रूप में संतान को दी थी, इस शर्त पर कि उनकी देखभाल की जाएगी, और यदि वह शर्त पूरी नहीं होती, तो ट्रिब्यूनल उस संपत्ति का हस्तांतरण रद्द कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह दोहराया है कि यह अधिनियम केवल कानून नहीं, बल्कि एक कल्याणकारी उपाय है, जो समाज में बुजुर्गों की गरिमा को बनाए रखने का प्रयास करता है।

3. न्यायपालिका के निर्णय: एक स्पष्ट संदेश
हाल ही में न्यायालयों द्वारा दिए गए कई निर्णयों ने समाज में एक सशक्त संदेश दिया है:
- एक 61 वर्षीय पुत्र को उसके 80 वर्षीय माता-पिता की दो कमरों वाली संपत्ति से बेदखल कर दिया गया, क्योंकि वह उनकी देखभाल नहीं कर रहा था।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक वृद्ध माँ की याचिका को स्वीकार करते हुए पुत्र और पुत्रवधू को संपत्ति से बेदखल कर दिया।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह स्थापित किया कि ट्रिब्यूनल ऐसे मामलों में संतान को संपत्ति से बेदखल कर सकता है यदि वह माता-पिता के प्रति अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभाता।
इन निर्णयों से यह स्पष्ट होता है कि अब केवल नैतिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि कानूनी दायित्व भी है कि संतान अपने माता-पिता की सेवा और भरण‑पोषण करें।
निष्कर्ष
भारत की न्याय प्रणाली वृद्धजनों के सम्मान और सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है।
Reported By – Jatin Sisodiya