
जिसने चिकित्सा जगत और आम जनता दोनों को चौंका दिया है। जानकारी के अनुसार, एम्स के ब्लड बैंक में रक्त और प्लाज्मा की कालाबाजारी (ब्लैक मार्केटिंग) की जा रही थी। यह घोटाला तब उजागर हुआ जब ब्लड बैंक के सीसीटीवी फुटेज की जांच की गई।
🔍 मामला क्या है
एम्स प्रशासन को संदेह था कि ब्लड बैंक से कुछ संरक्षित प्लाज्मा यूनिट्स गायब हो रहे हैं। जब सुरक्षा विभाग ने सीसीटीवी कैमरों की रिकॉर्डिंग देखी, तो पता चला कि ब्लड बैंक में तैनात एक आउटसोर्स कर्मचारी प्लाज्मा यूनिट्स चोरी करके उन्हें बाहर के लोगों को बेच रहा था।
प्लाज्मा और रक्त जैसे महत्वपूर्ण जैविक पदार्थ अस्पतालों में गंभीर बीमारियों, सर्जरी, दुर्घटनाओं और थैलेसीमिया जैसे मरीजों के इलाज में अत्यधिक जरूरी होते हैं। ऐसे में इनकी चोरी और बिक्री न केवल कानूनी अपराध है बल्कि मानवता और चिकित्सा नैतिकता के खिलाफ भी है।
👮♂️ कार्रवाई
एम्स प्रबंधन ने तुरंत मामले की जांच शुरू की और संबंधित कर्मचारी को रंगे हाथों पकड़ा। बाद में इस पूरे प्रकरण की रिपोर्ट बागसेवनिया थाना पुलिस को दी गई, जहां एफआईआर दर्ज कर ली गई है। पुलिस अब यह भी जांच कर रही है कि इस कर्मचारी के साथ और कौन-कौन लोग इस रैकेट में शामिल हैं।

⚖️ संभावित धाराएँ
मामला चोरी (IPC 379) और धोखाधड़ी (IPC 420) जैसी धाराओं के तहत दर्ज किया गया है। अगर जांच में यह साबित होता है कि उसने अस्पताल की सामग्री बेचने का नेटवर्क तैयार किया था, तो उस पर एनडीपीएस या जैविक सामग्री अधिनियम की धाराएँ भी लग सकती हैं।
🚨 महत्व और प्रभाव
यह घटना न केवल एम्स भोपाल की साख को धक्का पहुंचाती है बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि इतनी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद ऐसे संवेदनशील चिकित्सा संसाधनों की चोरी कैसे संभव हुई।
एम्स प्रशासन ने अब ब्लड बैंक की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने और हर यूनिट की डिजिटल ट्रैकिंग की प्रक्रिया शुरू करने की बात कही है।

📍 निष्कर्ष
एम्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से ब्लड और प्लाज्मा की चोरी स्वास्थ्य प्रणाली की सुरक्षा पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अस्पतालों में आउटसोर्स कर्मचारियों की निगरानी और जवाबदेही को और सख्त करने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में ऐसे संवेदनशील संसाधनों की कालाबाजारी न हो सके।
Reported By – Jatin Sisodiya