
मामला उस बयान से जुड़ा है, जो एक टीवी बहस के दौरान महर्षि वाल्मीकि को लेकर दिया गया था। शिकायतकर्ता चौधरी यशपाल, जो भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज भावदास के राष्ट्रीय संयोजक हैं, ने आरोप लगाया कि एंकर ने बहस के दौरान महर्षि वाल्मीकि के बारे में अनुचित और आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया। यह बयान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित हुआ, जिससे वाल्मीकि समाज की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं।

शिकायत में कहा गया कि ये टिप्पणियां पूरे वाल्मीकि समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाली थीं और इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती थी। इसी आधार पर पुलिस ने कार्रवाई करते हुए मामला दर्ज किया।
एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 299 और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(v) के तहत प्रकरण दर्ज किया गया है। ये धाराएं किसी धर्म या समुदाय की धार्मिक भावनाओं का अपमान करने और ऐसे व्यक्ति के प्रति असम्मानजनक शब्दों के प्रयोग से संबंधित हैं, जिन्हें अनुसूचित जाति या जनजाति समुदाय में उच्च सम्मान प्राप्त हो।

पुलिस के अनुसार, मामले की जांच डीएसपी स्तर के अधिकारी द्वारा की जाएगी, जैसा कि एससी/एसटी अधिनियम में प्रावधान है। वहीं, सूत्रों के अनुसार इस घटना को लेकर कई दलित संगठनों ने भी आपत्ति जताई है और कठोर कार्रवाई की मांग की है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अब जांच में यह देखा जाएगा कि बयान का वास्तविक संदर्भ क्या था, क्या उसमें जानबूझकर धार्मिक भावनाएं भड़काने का इरादा था या उसे गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया। अदालत में यह भी तय होगा कि क्या यह टिप्पणी सार्वजनिक रूप से की गई थी और क्या यह सचमुच समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाली थी। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक सम्मान के बीच की सीमा को लेकर एक महत्वपूर्ण कानूनी परीक्षण बन सकता है।
Reported By – Jatin Sisodiya