
हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें बॉलीवुड अभिनेता पारेश रावल की नई फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ को लेकर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। याचिका में फिल्म की कहानी और प्रस्तुतिकरण को संवेदनशील बताया गया है, जिससे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से विवाद की आशंका जताई गई है।
पीआईएल में कहा गया है कि फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ में ताज महल और उससे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाओं को गलत तरीके से दर्शाया गया है, जो न केवल इतिहास के विरुद्ध है बल्कि देश की सांस्कृतिक धरोहर को भी ठेस पहुंचाता है। याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया है कि फिल्म में कुछ ऐसे दृश्य और संवाद शामिल हैं जो धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकते हैं।
इस मामले में याचिका दाखिल करने वाले पक्ष ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि फिल्म की रिलीज़ पर अस्थायी रोक लगाई जाए और उसके कंटेंट की समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की जाए। उनका मानना है कि बिना उचित जांच के फिल्म को रिलीज करना सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकता है।
पारेश रावल के प्रतिनिधि पक्ष ने फिलहाल इस पीआईएल पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन बताया जा रहा है कि वे जल्द ही कोर्ट में अपनी दलील पेश करेंगे। फिल्म के निर्माता और निर्देशक भी इस विवाद से निपटने के लिए कानूनी सलाह ले रहे हैं।
यह मामला न केवल फिल्म उद्योग के लिए बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ में भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कोर्ट की अगली सुनवाई में यह स्पष्ट होगा कि क्या ‘द ताज स्टोरी’ जैसी फिल्मों के लिए संवेदनशील विषयों पर और अधिक कड़ाई से नजर रखी जानी चाहिए या नहीं।
यह स्थिति दर्शाती है कि इतिहास और संस्कृति पर आधारित फिल्मों को बनाते समय filmmakers को ज्यादा सावधानी बरतनी होगी, ताकि सांप्रदायिक और सामाजिक विवादों से बचा जा सके। दिल्ली हाईकोर्ट की इस पीआईएल पर निर्णय आने वाले दिनों में फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों दोनों के लिए अहम साबित होगा।
