
हाल ही में अफगानिस्तान से प्रेरित कुछ चरमपंथी विचारों की चर्चा तब तेज हो गई जब सोशल मीडिया पर कुछ कट्टरपंथी नेताओं ने महिला पत्रकारों को लेकर ‘मर्यादा’ और ‘प्रतिबंध’ की बातें करनी शुरू कीं। इन बयानों ने न केवल पत्रकारिता जगत को झकझोर दिया बल्कि भारतीय समाज की संवैधानिक भावना पर भी सवाल खड़ा कर दिया।

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता का अधिकार संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है। ऐसे में किसी भी वर्ग द्वारा महिला पत्रकारों पर ‘ड्रेस कोड’, ‘मर्यादा’ या ‘प्रतिबंध’ थोपने की कोशिश, तालिबानी सोच की झलक देती है। यह वही मानसिकता है जो अफगानिस्तान में महिलाओं को घरों में कैद रखती है,

उन्हें शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक जीवन से वंचित करती है।पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सच को सामने लाना है, चाहे वह पुरुष करे या महिला — सच्चाई की आवाज़ को दबाना लोकतांत्रिक मूल्यों का अपमान है। भारतीय समाज में महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी क्षमता सिद्ध की है — चाहे वह राजनीति हो, सेना हो या मीडिया।इसलिए यह स्पष्ट संदेश देना ज़रूरी है कि भारत में तालिबानी सोच की कोई जगह नहीं है।

यहाँ कानून का शासन है, न कि कट्टरपंथ का। महिला पत्रकारों को डर या भेदभाव से मुक्त होकर काम करने का पूरा अधिकार है — और यह ज़िम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है कि वह उनकी सुरक्षा और सम्मान की गारंटी दे।
Reported By – Jatin Sisodiya